कविता : पंछी.....
पंछी: आशा की पुकार और जीवन की जद्दोजहद"
कविता
रचना श्रीवास्तव
5/27/20231 min read
My post contentपंछी.....
पंछी छुप छुप कर तुम
यूँ आँखमिचौली करते
अपनी अठखेलियों में मस्त
भर देते जैसे एक अद्भुत
विश्वास हमारे मन में !
इस तपती झुलसती दुपहर में
इन चंद बचे झुरमुटों में छुपकर
क्या ढूँढते रहते चुनचुनकर
पंछी ये जद्दोजहद तुम्हारी
जीवन को बचाने की तैयारी..!
आज इस कठिन वक़्त में
मानव कर रहा जद्दोजहद
बचाने मानव जीवन को
जान गया है शायद
आज अपनी हर हद… !
विध्वंस करके बिगाड़ा
प्रकृति का संतुलन बेहिसाब
जीवन उद्यम में तुम्हारा
विश्वास भर रहा है
एक नयी उमंग मेरे मन में…!
दाना पानी चुगते ए पंछी
गाते तुम फुदक फुदक कर
ठण्डी साँझ उतरेगी भू पर
ढल जाएगी फिर यह
तन मन झुलसाती दुपहर…!
प्राणों में नवचेतना भरते
गाते तुम जो गीत मधुर
जीवन के प्रति प्रेम अपार
जगाता आशा, धरा पर पुनः
नवजीवन का होगा संचार..!