कविता : दर्द….
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रचना श्रीवास्तव
7/15/20231 min read
सब कहते हैं
मैं दर्द लिखती हूँ
क्यों मैं सिर्फ
दर्द लिखती हूँ
पर सच तो ये है
जब मैं खुद को
समझ नहीं पाती
तब लिखती हूँ
जब अपना ही
वजूद खोने और
ढूँढने लगती हूँ
तब लिखती हूँ
क्या बताऊँ कि
मेरा दर्द क्या है
जब टूट जाती हूँ
तब लिखती हूँ
कितना आसान है
कहना ग़म भूल जाओ
जब भुला नहीं पाती
तब लिखती हूँ
जब जिंदगी की
परेशानियों को सुलझाते
सुलझाते थक जाती हूँ
तब भी लिखती हूँ
शिकायत किससे करूँ
अपने ही दिल को मनाती हूँ
जब जब टूटता रूठता दिल
तब तब लिखती हूँ
रोना चाहूँ तो आँसू नहीं
हँसना चाहूँ तो मुस्कान नहीं
जब खुद को समझाते हार जाती हूँ
तब लिखती हूँ.....!!!