कविता : दिल से
अभिव्यक्ति का सागर
रचना श्रीवास्तव
7/15/20231 min read
छंद मुक्तक गीत गज़ल
भावों को इनमे मत बाँधो
जो कहना है वो कहने दो
गणित नहीं ये जीवन का
जज़्बातों का एक दरिया है
दिल से इसको बहने दो
सीधी सादी दिल की बातें
आँखों में रोती हँसती हैं
इस सागर में हलचल रहने दो
ख़ुशियों के आँसू छलकें
या ग़म में भीगी हों पलकें
सुख दुःख को यूँ ही सहने दो
दर्द कहीं जब चुभता है
ज़ख़्म कोई जब दुखता है
दिल में है जो वो लिखने दो
पर पीड़ा की दहकी ज्वाला
जो दिल में आया लिख डाला
गर ये है खता तो करने दो
हालात के आगे झुक जाएँ
इतने भी हम मजबूर नहीं
ये जीवन हमको ख़ुद गढ़ने दो
पदचिन्हों पर चलना मंज़ूर नहीं
या तो मेरे साथ चलो तुम
या फिर तन्हा चलने दो .....!!!