कविता : दुनिया कितनी सुंदर
खुद से ये दुनिया
रचना श्रीवास्तव
7/15/20231 min read
जब देखती हूँ मैं
हरे भरे पेड़ों को
छांव लुटाते
ख़ुशी में झूमते हुए
लाल लाल सुंदर
गुलाबों को अपने
और तुम्हारे लिए
हर्षित हो सुगंध
बाँटते खिलते हुए
बलखाती नदियों
को खिलखिलाते
तो कहती हूँ
ख़ुद से ये दुनिया
कितनी सुंदर है.....!!
देखती हूँ नीले नीले
आसमानो मे उड़ते
हुए सफ़ेद बादलों
को बेपरवाह
कितने प्यारे लगते
हैं ये इंद्रधनुष के रंग
बरसते हैं वो
जब न सिर्फ़
आकाश मे बल्कि
गुजरने वाले हर
चेहरे पर
तो कहती हूँ
ख़ुद से ये दुनिया
कितनी सुंदर है....!!
देखती हूँ हाथ
मिलाते दोस्तों को
और कहते कैसा
है तू मेरे यार
सच उस एक पल
में है बस प्यार
देखती हूँ मासूम
बच्चे का रोना उसका
बढ़ना सीखना इतना
जितना शायद कभी नहीं
जान सकूँगी मैं
तो कहती हूँ
ख़ुद से ये दुनिया
कितनी सुंदर है......!!