कविता : मैंने उसे अक्सर देखा है....
ईश्वर: सबकी आभासित अस्तित्व
रचना श्रीवास्तव
5/20/20231 min read
सच्चे हर इंसान में
गीता और कुरान में
बच्चों की मुस्कान में
हौसलों की उड़ान में
प्रेम की अद्भुत पहचान में!
पर दुःखों को हरने में
पर उपकार करने में
जल के अमृत हो जाने में
वृक्षों के तले सुस्ताने में
लोगों के जीने मर जाने में!
ममता की प्यासी बाहों में
दिल की अमीर दुआओं में
ईमानदारी और वफाओं में
शिव शंकर की जटाओं में
सावन की घनघोर घटाओं में!
पर्वतों और घाटियों में
सुनसान पड़ी वादियों में
कलकल बहती नदियों में
पलपल बीती सदियों में
प्रकृति के अनंत आशीषों में!
टूटे दिलो की आस में
सहराओं की प्यास में
राधा मीरा के विश्वास में
फ़क़ीरों की अनंत तलाश में
आती जाती हर श्वास में!
सूरज की उगती किरणों में
सच्चे सुंदर आचरणों में
देवों के अवतरणों में
ओंकार के सिमरणों में
माता जननी के चरणों में!
हाँ मैंने ईश्वर को देखा है...!!