कविता : इबादत
"यादों के साथ चलते चलो
रचना श्रीवास्तव
7/15/20231 min read
कहाँ खो गया सुखचैन प्रिय, कहाँ रातों की नींद गई।
कहाँ रह गये रिश्ते नाते सब, कहाँ बच्चों की प्रीत गई ।
कहाँ गये वो ख्वाब सलोने, जिनसे मन में उजाला था।
कहाँ रह गये बेटे बेटी सब, जिनको बड़े प्यार से पाला था।
जीवन सफर में साथ चले जो, साथ क्यों उनका छूट गया।
दूर बहुत हम दूर आ गये, पीछे दिल अपना टूट गया ।
जब तक पराग है जीवन में भौंरे आ आकर मँडराते हैं।
अपने ख़ून से सींचा जिनको वो पौधे पेड़ बन ठुकराते हैं।
आज उमर के इस पड़ाव पर, और न कोई चाहत है।
एक दूजे को थामे रखें, बस मेरी यही इबादत है।