कविता : कैसे.
प्रेम के रंग: भावनाओं की सुरमई कहानी
रचना श्रीवास्तव
5/20/20231 min read
भावों को शब्दों में गूथूँ मैं
अमर प्रेम का गीत लिखूँ मैं
मन विह्वल तन ने सुधि खोयी
एक आँख हँसी एक है रोयी
मौन गुंजित है उर अंतर में
शब्द खो गए नाद स्वरों में
हिय तरंगित निर्मल जल लहरी
प्रकृति हुई है प्रेम ऋतु प्रहरी
अंक समाये फिर दुनिया रीती
चंद पल जैसे सदियाँ बीती..!!!
राग विराग़ विस्मृत हैं सारे
आँखें मींचे जगत बिसारे
रंगहीन बिखरे हैं रंग अपार
गुण धर्म रहित मिथ्या संसार
मनभावन मिलन के सुख का
पा सका न कोई ओर छोर
बोल उठे सुन सुन झूमे नाचे
चातक मोर देख घन घोर
प्रेम भरे मन ऐसे मिल जाए
द्वैत कहीं फिर रह न पाए..!!!