कविता : प्रेम

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रचना श्रीवास्तव

7/15/20231 min read

प्रेम जीवन का कोई

समीकरण नही

बल्कि जीवन होता है

कठिन या आसान नही

कोई पहचान नही

प्रेम बस प्रेम होता है

प्रेम में होने पर पहले

तुमको ख़ुद की ओढ़ी हुई

नर्म खोलों से निकलना होगा

दोस्त बन के खुद को

अपने“मैं”से मुक्त करना होगा

शाख़ों पर खिल रहे गुलाबों को

बिना तोड़े छोड़ना होगा

टूटकर बिखरे जंगली गुलों को

समेट लेने की इच्छा को मारना होगा

बाँहें पसार गले लगाने की अकुलाहट को

सीने में ही क़ैद करना होगा

सदाएँ देने पर भी वो ना पलटे तो

आवाज़ की दरारों को ख़ुद भरना होगा

उसे करके मुक्त ख़ुद से निकल

जाने का रास्ता दे देना होगा

भले ही दिल ज़ार ज़ार रो रहा हो

कालजयी मुस्कान उपहार देना होगा

प्रेम करने से पहले

तुमको ये जान लेना होगा

कि प्रेम हर बार तुमसे

तुमको मांगता रहेगा

जिस क्षण तुम ख़ुद को

और दे देने से इंकार कर दोगे

उसी क्षण प्रेम दम तोड़ देगा

क्योंकि प्रेम में प्रेम देना ही

प्रेम को पाना होता है....!!!